इसलिए, निर्यात क्षेत्र जहां इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे आयात की तीव्रता अधिक है, में लाभ डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? नहीं देखा जा सकता है. सेवा क्षेत्र जैसे आईटी और श्रम प्रधान निर्यात क्षेत्र जैसे कपड़ा वास्तव में लाभान्वित होंगे.
डॉलर के आगे क्यों गिर रहा है रुपया
अमेरिकी डॉलर के आगे भारतीय रुपया इतना गिर चुका है जितना इतिहास में पहले कभी नहीं गिरा. क्या कहती है यह गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के ताजा हालात के बारे में?
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया इतिहास में पहली बार 80 के काफी करीब पहुंच चुका है. सवाल उठ रहे हैं कि लगातार हो रही इस गिरावट में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए क्या संदेश हैं. लेकिन रुपये की कीमत के गिरने के पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण हैं.
डॉलर के मुकाबले यह साल रुपये के लिए अच्छा नहीं रहा है. 2022 की शुरुआत से ही रुपये की कीमत में गिरावट दर्ज की जा रही है और फरवरी में यूक्रेन युद्ध के शुरू हो जाने के बाद से संकट और बढ़ गया. इस साल जनवरी से अभी तक रुपये की कीमत करीब छह प्रतिशत गिर चुकी है.
रुपये के गिरने के सबसे बड़े कारणों में से विदेशी निवेशकों के भारत से अपने निवेश को निकाल लेना बताया जा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक पिछले छह महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारत से करीब 2,320 अरब रुपये निकाल लिए हैं. विदेशी निवेशकों का पैसे निकाल लेना इस बात का संकेत है कि वो भारत को इस समय निवेश करने के लिए सुरक्षित नहीं समझ रहे हैं.
मजबूत होता डॉलर
गिरावट का एक और कारण डॉलर सूचकांक का लगातार बढ़ना भी बताया जा रहा है. इस सूचकांक के तहत पौंड, यूरो, रुपया, येन जैसी दुनिया की बड़ी मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर के प्रदर्शन को देखा जाता है. सूचकांक डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? के ऊपर होने का मतलब होता है सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती. ऐसे में बाकी मुद्राएं डॉलर के मुकाबले गिर जाती हैं.
रुपए के अलावा यूरो भी डॉलर के आगे गिर रहा हैतस्वीर: Klaus-Dieter Esser/agrarmotive/picture alliance
इस साल डॉलर सूचकांक में अभी तक नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है जिसकी बदौलत सूचकांक इस समय 20 सालों में अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है. यही वजह है कि डॉलर के आगे सिर्फ रुपया ही नहीं बल्कि यूरो की कीमत भी गिर गई है.
रुपये की गिरावट का तीसरा कारण यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है. युद्ध की वजह से तेल, गेहूं, खाद जैसे उत्पादों, जिनके रूस और यूक्रेन बड़े निर्यातक हैं, की आपूर्ति कम हो गई है और दाम बढ़ गए हैं. चूंकि भारत विशेष रूप से कच्चे तेल का बड़ा आयातक है, देश का आयात पर खर्च बहुत बढ़ गया है. आयात के लिए भुगतान डॉलर में होता है जिससे देश के अंदर डॉलरों की कमी हो जाती है और डॉलर की कीमत ऊपर चली जाती है.
यूरो के मुकाबले बढ़ रहा रूपया
रुपये के अलावा यूरो भी डॉलर के आगे गिर रहा है. मंगलवार को यूरो गिर कर डॉलर के बराबर पहुंच गया. ऐसे इससे पहले सिर्फ 2002 में हुआ था और अब हुआ है. माना जा रहा है कि इसका कारण भी निवेशकों का यूरोजोन से पैसे बाहर निकाल कर अमेरिका में डालना है.
इसका मतलब है वैश्विक निवेशकों को इस समय अपने निवेश के लिए अमेरिका ही सबसे सुरक्षित जगह लग रही है. यूरो की तरह ही रुपये के लिए भी यह अच्छी खबर नहीं है. यूरो के मुकाबले रुपये की हालत काफी बेहतर है और उसमें लगातार बढ़ोतरी ही देखी जा रही है. 2022 की शुरुआत में एक यूरो 90 रुपये के आस पास था और इस समय 80 के आस पास है.
लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि अगर यूरो भी इसी तरह गिरता रहा तो यह रुपये के लिए भी ठीक नहीं होगा. यूरो के भारत और दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ गहरे व्यापारिक संबंध हैं जिसकी वजह से आशंका है कि यूरो की बिगड़ती हालत का असर रुपये और दूसरी मुद्राओं पर भी पड़ेगा.
डॉलर के मुकाबले ऑल टाइम लो लेवल पर पहुंचा रुपया, घटकर इतनी हुई कीमत
DollarVsRupee: डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। सोमवार 54 पैसे की गिरावट के बाद एक डॉलर की कीमत 81.63 रुपये हो गई है। जोकि अबतक का सबसे निचला स्तर है।इसस पहले सोमवार सुबह डॉलर के मुकाबले रुपये का भाव 81.47 रुपये पर आ गया था। डॉलर 20 साल के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। वहीं, रुपये में आई ऐतिहासिक गिरावट के बाद व्यापारियों ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने गिरावट को रोकने के लिए डॉलर बेचे जाने की संभावना है।
डिमांड आधारित है यह महंगाई
यील्ड घट गया, स्टॉक मार्केट और कमोडिटी प्राइस आसमान पर पहुंच गया जिसके कारण महंगाई बढ़ गई. इसे डिमांड आधारित महंगाई कहते हैं. यह ऐसी महंगाई होती है जिसमें एक्सेस डिमांड का डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? सबसे बड़ा रोल होता है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरर है. उसने कोरोना पर कंट्रोल करने के लिए लॉकडाउन को लंबे समय तक गंभीरता से लागू किया. इसस सप्लाई की समस्या पैदा हो गई. इससे महंगाई को सपोर्ट मिला. फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया जिसके कारण कच्चा तेल आसमान पर पहुंच गया. इससे महंगाई की आग को और हवा मिली. यूरोप में गैस की किल्लत पैदा हो गई जिससे भी महंगाई को सपोर्ट मिला.
कुल मिलाकर अभी की महंगाई डिमांड आधारित और यूक्रेन क्राइसिस के कारण सप्लाई आधारित भी है. महंगाई का हाल ये है कि अमेरिका और इंग्लैंड में इंफ्लेशन टार्गेट 2 फीसदी है जो 9-10 फीसदी पर पहुंच गया है. रिजर्व बैंक ने मॉनिटरी पॉलिसी पर नियंत्रण बनाए रखा जिसके कारण 6 फीसदी की महंगाई का लक्ष्य 7 फीसदी के नजदीक है.
मांग में कमी के लिए इंट्रेस्ट डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? रेट में बढ़ोतरी
महंगाई को काबू में लाने के लिए फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोपियन सेंट्रल बैंक समेत दुनिया के सभी सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट में भारी बढ़ोतरी कर रहे हैं जिससे मांग में कमी आए. इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी के कारण फिक्स्ड इनकम के प्रति आकर्षण बढ़ा और शेयर बाजार के प्रति आकर्षण घटा है. इसलिए दुनियाभर के शेयर बाजार में गिरावट है और बॉन्ड यील्ड उछल रहा है.
महंगाई बढ़ने से करेंसी की खरीद क्षमता घट जाती है. डॉलर के मुकाबले दुनिया की तमाम करेंसी में गिरावट आई है. जब कोई सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट बढ़ाता है जो इसका मतलब होता है कि वहां की इकोनॉमी मजबूत स्थिति में है. इकोनॉमी को लेकर मजबूती के संकेत मिलने पर उस देश की करेंसी भी मजबूत हो जाती है. एक्सपर्ट का कहना है कि डॉलर का प्रदर्शन ज्यादा मजबूत दिख रहा है, क्योंकि कोरोना के बाद दुनिया की तमाम इकोनॉमी की हालत तो खराब है ही और उनकी करेंसी की वैल्यु भी घटी है. इसके कारण डॉलर को डबल मजबूती मिल रही है.
डॉलर के मुकाबले क्यों गिरता जा रहा है रुपया, भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या होगा इसका असर? | Explained
Published: September 28, 2022 12:37 PM IST
Dollar Vs Rupee : अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया जुलाई 2022 से 79-80 के बीच उतार-चढ़ाव कर रहा है. डॉलर इंडेक्स 104.30 के स्तर से बढ़ रहा है. यूएस फेड ने अपनी पिछली बैठक में ब्याज दरों में 75 बीपीएस की बढ़ोतरी की और नवंबर में इसे 75 बीपीएस और दिसंबर में 50 बीपीएस बढ़ाने का संकेत दिया है.
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डॉलर इंडेक्स जो उस समय 107 पर था, बढ़कर 111.60 पर पहुंच गया है. यूरो नीचे गिरकर 0.98 और GBP अपने 20 साल के निचले स्तर 1.12 पर आ गया. डॉलर इंडेक्स अभी भी 112 के स्तर की ओर तेजी से जाता हुआ देखा जा रहा है.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?
रुपये के कमजोर होने का सबसे बड़ा असर मुद्रास्फीति पर पड़ता है, क्योंकि भारत अपने कच्चे तेल का 80% से अधिक आयात करता है, जो भारत का सबसे बड़ा आयात है.
तेल दो महीने से अधिक समय से 100 डॉलर प्रति बैरल के आसपास मंडरा रहा है और कमजोर रुपये से मुद्रास्फीति के दबाव में इजाफा होगा. भारत उर्वरकों और खाद्य तेलों के लिए भी अन्य देशों पर बहुत अधिक निर्भर है. क्रिसिल के अनुसार, देश का उर्वरक सब्सिडी बिल इस वित्त वर्ष में 1.9 ट्रिलियन रुपये के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंचने के लिए तैयार है.
कमजोर रुपया जहां आयात को महंगा बनाता है, वहीं इसके कुछ फायदे भी हैं. यह हमारे निर्यातकों को सैद्धांतिक रूप से अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है.
भारत के प्रमुख निर्यात आइटम जैसे रत्न और आभूषण, पेट्रोलियम उत्पाद, जैविक रसायन और ऑटोमोबाइल, और मशीनरी आइटम में आयात की मात्रा काफी अधिक है. आपूर्ति की कमी के कारण कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ, निर्यातकों के लिए उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी, जिससे उनके मार्जिन पर असर पड़ेगा.
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